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बुधवार, 2 सितंबर 2020

बुधवार, सितंबर 02, 2020

बस्तर रियासत में हल्बा क्रांति



बस्तर रियासत में हल्बा क्रांति

लेखक :- GOVINDA दिनांक :- Wednesday 02-09-2020 

" बस्तर रियासत 1324 ईस्वी के आसपास स्थापित हुई थी, जब अंतिम काकातिया राजा, प्रताप रुद्र देव ( 12 9 0-1325) के भाई अन्नाम देव ने वारंगल को छोड़ दिया और बस्तर में अपना शाही साम्रज्य स्थापित किया | महाराजा अन्नम देव के बाद महाराजा हमीर देव , बैताल देव , महाराजा पुरुषोत्तम देव , महाराज प्रताप देव ,दिकपाल देव ,राजपाल देव ने शासन किया |बस्तर शासन की प्रारंभिक राजधानी बस्तर शहर में बसाई गयी , फिर जगदलपुर शहर में स्थान्तरित की गयी । बस्तर में अंतिम शासन महाराजा प्रवीर चन्द्र भंज देव (1936-1948) ने किया । महाराजा प्रवीर चन्द्र भंज देव बस्तर के सभी समुदाय , मुख्यतः आदिवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। ‘दंतेश्वरी ‘, जो अभी भी बस्तर क्षेत्र की आराध्य देवी है , प्रसिद्ध दांतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा में उनके नाम पर रखा गया है।
      क्रांति कभी भी किसी आयाम का जन्मदाता होता है भले ही क्रांति किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हो कालांतर में हल्बा समाज में भी क्रांति विद्रोह पुरातन काल में हुआ है देश काल परिस्थिति किसी भी क्रांति या निर्माण के लिए सहयोग करती है | 
      क्षेत्रीय सामाजिक इतिहास की जानकारी सामाजिक चेतना की धरोहर है प्राचीन बस्तर एक स्वतंत्र राज्य था। बस्तर रियासत में नल वंश गंगवंश छिंदक नागवंश और चालुक्य काक्तिय वंश के शासकों ने शासन की। चालुक्य वंश के 14वें शासक अजमेर सिंह थे। वे चालुक्य नरेश दलपत देव के पुत्र थे। दलपत देव बस्तर रियासत में संभवत 1731 ईसवी से 1974 ईसवी तक शासन किया। दलपत देव की सात रानियां थी, और पटरानी राम कुंवारी के पुत्र अजमेर सिंह थे। 
        रानी कुसुम कुंवारी के पुत्र दरियाव देवता थे। दरियाव देव दलपत देवकी बड़े पुत्र थे, राजा दलपत देव ने दरियाव देव को बस्तर का राजा बनाने के उद्देश्य से अजमेर सिंह को 18 गढ़ बड़े डोंगर का राज्यपाल नियुक्त किया। दलपत देव के इस चाहत को हलबा जाति ने जमकर विरोध किया। 1774 ईस्वी में दलपत देव स्वभाव से उदंड और तेजतर्रार था, इस कारण रियासत में जन आक्रोश राजा की प्रति काफी बढ़ गया। 
        जनाक्रोश के चलते बड़े डोंगर मे बसे हलबा जाति के लोग अजमेर सिंह को बस्तर रियासत का राजा बनाने हेतु जन समर्थन जुटाए, योजना अनुसार अजमेर सिंह 18 गढ़ बस्तर अंचल के हल्बा जाति की सैनिकों के सहयोग से राजा दरियाव देव पर जगदलपुर में हमला बोल दिया। जिसमें दरियाव देव बुरी तरह हार गया। तब अजमेर सिंह हल्बा जाति के सहयोग से बस्तर रियासत के राजा बने। तथा 2 वर्ष तक सफलतापूर्वक शासन किया तथा रियासत में हलबा जाति को मुख्य मुख्य पदों में नियुक्ति मिला परास्त होने पर दरियाव देव पड़ोसी राज्य जयपुर उड़ीसा चला गया समय अंतराल दरियाव देव हार का बदला लेने के लिए जयपुर रियासत के सहयोग से जगदलपुर में चढ़ाई कर दिया जिसे अजमेर सिंह सामना नहीं कर सके तथा बुरी तरह घायल हो गए घायल अजमेर सिंह को हल्बा जाति के लोग उठाकर बड़े डोंगर लाए एवं जड़ी बूटी एवं अन्य दवाइयों के माध्यम से उपचार किया गया। 
        फिर भी अंततः उनकी मृत्यु हो गई अजमेर सिंह की मृत्यु के उपरांत 18 गढ़ के हलबा जाति के लोग दरियाव देवकी विरुद्ध हो गए और विद्रोह करने लगे बस्तर रियासत के इतिहास में यह विद्रोह हल्बा विद्रोह के नाम से प्रसिद्ध हुआ दरियाव देव ने 1779 ईस्वी में हलवा कांति का रिसेंट पूर्वक दमन किया दरियाव देव की सैनिक बस्तर रियासत में सिर्फ हल्बा जाति के लोगों के साथ ही कत्लेआम लूटमार की हलबा जाति के लोगों को रियासत के सैनिक पकड़ पकड़ कर 90 फीट चित्रकोट (बस्तर) जलप्रपात में फेंक दिए जिसे तत्कालीन समय में 18 गढ़ बस्तर में हल्बा जाति का महाविनाश हो गया इस तरह दरियाव देव ने हलवा क्रांति का बुरे ढंग से दमन किया। 
        बस्तर अंचल में किवदंती है कि हल्बा क्रांति का दमन चक्र जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसा विभत्स था इस हलवा क्रांति विषय पर वर्तमान समय में हल्बा समाज के उच्च शिक्षित नवयुवकों को शोध करना चाहिए ताकि अखिल भारतीय स्तर पर हल्बा समाज को ज्ञात हो सके की प्राचीन बस्तर रियासत में हल्बा जाति का बलिदान हुआ था।
      सभार भुवनेश्वर भारद्वाज 
        अध्यक्ष गढ़ बारसूर "

शनिवार, 18 जनवरी 2020

शनिवार, जनवरी 18, 2020

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