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गुरुवार, 13 सितंबर 2018

आदिवासी आरक्षण का कर्ज और फर्ज / aadivasi aarkshan ka karj aur farj



                         भारतीय संविधान के शिल्पकार डा . बाबा साहेब अम्बेडकर जी की अध्यक्षता में २६ नवम्बर १९४९ को भारत में संविधान का निर्माण अर्थात जन्म हुआ |दयनीय दशा में जी रहे उन सभी लीगो की जीवन शैली अच्छी अच्छी हो,सभी लोगो को बराबरी में लेन के लिए उन्हें संपूर्ण मूलभूत हक अधिकार मिलने चाहिए इस हेतु २६ जनवरी १९५० को भारत में मानवतावादी ग्रन्थ "मानवतावादी भारतीय संविधान " लागु हुआ (संपूर्ण क्रियान्वयन अभी भी बाकि है )

                                                                           भारत में  "मानवतावादी भारतीय संविधान " लागु होने के पहले ब्राह्मण/हिन्दू सामाजिक व्यवस्था (B.S.O.) मनु का कानून लागु था | जिसमे ऊँची जाति ,नीची जाति ,छुआछूत ,जाति-पाति ,वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र,अतिशूद्र,अछूत,सछुत ) अर्थात सामाजिक क्रमिक असमानता  (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र,अतिशूद्र,अछूत,सछुत ) उस व्यवस्था में उस अमानवीय कानून व्यवस्था के हिसाब से सभी नीची जातियों और जमातियो को पढ़ने ,लिखने का,वोट डालने का अधिकार नहीं था |

यहाँ तक की जब थूकना होता था तो गले में हांड़ी होना जरुरी था हमारे पैर के निशान जमीन पर न रहे इसके लिए हमारे पूर्वज कमर में झाड़ू बंधकर चलता था | हमारे पूर्वजों की दयनीय दशा और अमानवीय कला क्या था जानने और समझने के लिए "पुस्तक मनुस्मृति " लेखक मनु महाराज मनुवादी का अध्ययन निहायत जरुरी है |

                                            लेकिन अभी हम देख रहे है की मानवतावादी भारतीय संविधान के लागू होने से   (ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र,अतिशूद्र,अछूत,सछुत ) देश के सभी जातियों में समानता आई | मानवतावादी भारतीय संविधान के बदौलत दिनों -दिन सभी नीची जातियों और जमातियो लोगो का उन्नति का मार्ग खुल गया है ,जो की डा .बाबा साहेब अम्बेडकर की देंन  है |जिन्होंने अपने जीवन में अनेक कष्ट झेलकर भी समस्त मूलनिवासियो समाज के लोगो के उन्नति का द्वार खोला |हम उस महान्तावादी,विश्व भूषण भारत रत्न डा .बाबा साहेब अम्बेडकर जी के ऋणी है जो हम आदिवासियों को अनेकानेक मूलभूत अधिकार मानवतावादी भारतीय संविधान आरक्षण =(प्रतिनिधित्व ) के माध्यम से हम आदिवासियों को दिये |
                                                यदि आदिवासी  समाज को अपनी आन्दोलन कामयाब करना है तो जल जंगल जमीन के साथ संस्क्रती और संविधान को जोड़ना होगा और इसे डा . बाबा साहब अम्बेडकर के विचारधारा को आधार देना होगा |
                                            आदिवासी संस्कृति और जमीन पर स्वामित्व इन बातोँ में ही आदिवासी अधिकार प्राप्त होता है |इसलिए हमें अपना जमीन एवम संस्कृति (आदिवासी धर्म) की रक्षा करनी चाहिए अन्यथा गैर आदिवासी बन जायेंगे |
                                            मूल निवासी = ९०% बहुजन समाज = (अनुसूचित जनजातिय , जनजातिय,अन्य पिछड़ा वर्ग,धार्मिक अल्पसंख्यक ) की मुक्ति वैसे ही देश और दूनिया का उद्धार डा . बाबा साहब अम्बेडकर की वैश्विक विचार धारा से  ही संभव हो सकती है |

                                                                                                                 सौजन्य 

                                           हल्बा हल्बी समाज छत्तीसगढ

संविधान डाउनलोड करें

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