हल्बी भाषा और बोली
सादर जय जोहर
बस्तर अंचल की प्रमुख बोली हल्बी,यद्यपि मराठी,हिंदी के उड़िया का सम्मिश्रण (भाषा वैज्ञानिक शब्दावली में कियोल )है ,तथापि इसे इसके वर्तमान स्वरूप में मराठी ,हिंदी या उड़िया की बोली मानना अपने आप में एक व्यंगात्मक बात होगी | यह एक अलग भाषा होती है।आत्येव इस भाषा को साहित्यिक परिनिष्ट भाषा के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से इसके लिए पृथक लिपि "हल्बी लिपि "का सृजन किया गया है | इस लिपि को देवनागरी लिपि में ही परिवर्तन कर बनाया गया है ,ताकि देवनागरी लिपि से परिचित हल्बी भाषी या हल्बी जानने वाला सरलता से इस लिपि को पढ़ सके |
विश्व के प्राचीन और वर्तमान लिपियों तथा एक आदर्श लिपि के सम्बन्ध में आवश्यक तत्वों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन करने के पश्चात इस लिपि का निर्माण किया गया है |यद्यपि देवनागरी लिपि किसी एक भाषा /बोली की लिपि नही है |हल्बी देवनागरी लिपि में भी लिखी जाती है |तथापि हल्बी भाषा के प्रति हल्बी भाषियों के मन में स्वाभिमान उत्पन्न करना और हल्बी में पढ़ना लिखना भी हलबी भाषा के निर्माण का प्रमुख कारण है। हल्बी भाषा ओडिया और मराठी के बीच की एक पूर्वी भारतीय-आर्य भाषा है। यह भारत के मध्य भाग में लगभग ५ लाख लोगों की भाषा है। इसे बस्तरी, हल्बा, हल्बास, हलबी, हल्वी, महरी तथा मेहरी भी कहते हैं। इस भाषा के वाक्यों में कर्ता के बाद कर्म और उसके बाद क्रिया आती है। इसमें विशेषण, संज्ञा के पहले आते हैं। यह प्रत्ययप्रधान भाषा है। यह एक व्यापारिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है किन्तु इसमें साक्षरता बहुत कम है।
इन सबसे अलग हट कर खास तौर पर हल्बा हल्बी आदिवासी समुदाय के सन्दर्भ में जबकि इस समुदाय विशेष को सिर्फ और सिर्फ इसलिए अनुसूचित जनजातीय हल्बा आदिवासी का दर्जा प्राप्त है ,क्योकि इनकी अपनी एक अलग रहन सहन व् विशेषकर बोली भाषा हल्बी है |और इसी आधार पर इस छोटी सी पुस्तिका हल्बा हल्बी सीखे को प्रकाशित करने की जो योजना है इसका मूल मकसद महाराष्ट्र ,मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ राज्य के लिए घोषित अनुसूचित जनजातीय समुदाय हल्बा आदिवासी साथियों में न केवल जाग्रति पैदा कर हल्बी में लिखने पढ़ने के लिए है बल्कि "हल्बी " को हर तरह हर स्तर पर संरक्षित व् संवर्धित करते हुए भारत के संविधान के अनुच्छेद ३४२ के तहत जहां हल्बा समुदाय को अनुसूचित जनजातीय समुदाय के रूप में यथावत सुरक्षित बनाये रखना है ,वाही इस हल्बी बोली को संविधान के आठवी अनुसूची के तहत एकभाषा "हल्बी "के रूप में मान्यता दिलाने की दिशा में भी एक अति महत्वपूर्ण दूरगामी पहल है |
इस पुस्तिका में जानकारियां है इस हेतु हमारे सहयोगी साथियों मा. विक्रम कुमार सोनी जी और मा. रूद्र नारायण पाणिग्रही जी (जगदलपुर छत्तीसगढ़ ) इन दोनों साथियों ने हमें अति महत्वपूर्ण योगदान दिया है | तथा मा. उत्तम कुमार कोठारी जी (ग्राम खैरवाही ,डौंडी छ.ग.) मा. बालसिंग देहरी जी(ग्राम -बासला,भानुप्रतापपुर ,कांकेर छ.ग.) ने सहायता की | इसके अतरिक्त आम हल्बा समुदाय के महत्वपूर्ण साथियों ने अपना नाम न छपवाने के शर्त पर तन मन धन से हर तरह के सहयोग प्रदान किये है हम उन सबका विशेष रूप से आभारी है |
इस तरह की जानकारी हल्बी को एक भाषा के रूप में विकाश ,संकलन,प्रकाशन तथा बस्तर अंचल की कलाकृतियों का संरक्षण एवम उन्नयन करने के लिए यह एक दूरगामी वृहद् परियोजना का आधारभूत भाग है |
आपका
राधेश्याम करपाल जी
Saraj me adhik se adhik yuth ko jodna chahiye taki unnat saraj ke sath desh unnat hoga
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