Breaking

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

अबूझमाड़ की व्यथा की अनसुलझी कहानी / abujhmad ki ansuljhi kahani

अबूझमाड़ की व्यथा की अनसुलझी कहानी 

दुनिया के दखल से दूर ,घने जंगलो की रहस्यमयी ओंट में खुद को सहेजे 
अबूझमाड़ के समाज ने क्या पाया ? आज ये सोचनीय है की दुनिया समय के कल्वतो के साथ कितनी आगे बढ़ चुकी है और इसी दुनिया की एक हिस्सा ऐसा है की वहा आज भी लोगो की मूल भुत सुविधाए जैसे शिक्षा इत्यादि से वांछित है |शेष दुनिया जिसे विकास का नाम देती है,वह आक भी इनके लिए मशीनी है ,बेईमानी है |वे जिसे विकास कहते है,वह खलिश है नाइंसाफी |इंसानियत बड़ी चीज है वाही पीछे छुट गई तो कैसा विकास ? अबुझमाड़ हमें आइना दिखा रहा है,संकीर्ण ,एकांकी और विकृत होते संवेदनहिन् महानगरीय समाज को सिख दे रहा है |
              किसी ने सच ही कहा है कि इसे देख सिने  में जलन सी होती है की हाय रे मेरा देश तुझे देख मुझे एक कविता आती है :- सिने  में जलन आँखों में तूफान सा क्यों है ,
                           इस देश में हर शख्स परेसान सा क्यों है |
                                      दिल है तो धड़कने का बहाना कोई दुन्ढ़े ,
                                      पत्थर की तरह बेहिस -ओ बेजान क्यों 
                           तन्हाईयों  की ये कौन सा अंजिल है रफीक ,
                           ता हद ये नजर एक बयान सा क्यों है |
                                      क्या कोई बात नयी नजर आती है हममे ,
                                         आइना हमें देख के हैरान सा क्यों है |

              आइना दिखाता  अबुझमाड़                                      

                    देश की राजधानी दिल्ली दुनिया की कमाऊ और विकसित शहरो की दौड़ में है | लेकिन इसी दिल्ली की सड़ांध मरती संकीर्ण बस्तियों में भूख से मौत की खबर आती है | दूसरी ओर दश की सबसे पिछड़े माने  जाने वाली छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल अबुझमाड़ में न तो भूख से कोई मरता है , न यहाँ वृद्धाश्रम है ,न अनाथालय ,न बेसहारों के लिए कोई शेल्टर होम की दरकार है |

                              सहकारिता में गुंथा हुआ है यहाँ का अद्भुत सामाजिक ताना बाना| इनका सामाजिक ढांचा नई  दिल्ली की मार्डेन सोसायटी के मुकाबले कही अधिक मजबूत ,अधिक जिम्मेदार और अधिक संवेदनशील है | जहा बेसहारों ,विधवाओं व् बुजुर्ग जानो का तिरस्कार नहीं होता है | जहा कोई पराया नहीं होता ,सभी अपने ही होते है | सहकारिता की मजबूत ताने बने में गुंथे हुए इस व्यवस्थित समाज को अति विकसित समाज कहने में कोई संशय की बात नहीं होगी |देश दुनिया के लिए अजूबा ही सही पर बस्तर संभाग के करीब चार हजार वर्ग किलोमीटर में फैला अबुझमाड़ भले ही देश दुनिया के लिए अजूबा हो , लेकिन यंहा का सामाजिक ढांचा बेमिसाल सहकारिता की सिख देती है |यंहा के गाँवो में कोई भूखा नहीं रह सकता क्योकि सभी को सभी की फ़िक्र है |ठीक इसका उल्टा विकसित शहरो में बफैलो पार्टी का बचा खाना कचरों में फेकी जाती है जब खा नहीं पाते तो इतना खाना लेते ही क्यों है | पर इन्हे क्या पता की इनके इसी  मुठी भर चांवल से किसी जान बच सकती है  पर इन्हें किसी की जान की क्यों फिकर रहे |

                                                                    ये सच है कि  अबुझमाड़ वन वासियों का क्षेत्र है अबुझमाड़यो का क्षेत्र है पर सुच कहू दोस्तों ये दिल वालो का क्षेत्र है यहाँ कोई अकेला नहीं बस्तर के मानवविज्ञानी डाक्टर राजेन्द्र सिंह जी बतात्ते है कि अबुझमाडिये नि: शक्त ,विधवा ,बेसहारा व् बुजुर्गो की सेवा के लिए कटिबद्ध रहते है |दिव्याग अथवा ऐसा कोई व्यक्ति जो अपनी खेती नहीं कर सकता ,उनके खेती के काम गाँव के लोग ही करते है और उनका भरन पोसन करते है |कोई व्यक्ति अपना मकान   अकेला नहीं बनाता है ,नहीं मजदूरो की जरुरत पड़ती है ,पूरा गाँव उस व्यक्ति को आशियाना बनाने में मदद करती है //|
                              लजीज खान पान  और तडके से कोषों दूर :- हर तरह के तडके से दूर इन  लोग दुनिया प्रकृति के बेहद करीब है |शाकाहारी हो या माँसाहारी ,वे भोजन पकाने के लिए कभी भी तेल का उपयोग नहीं करते |पानी से ही भोजन पकाने के तरीके को ही सेहत के लिए उपयुक्त मानते है |बिएमओ डाक्टर बी.एन.बनपुरिया जी मानते है कि मडियो की खान पान के तौर तरीके बेहद सटीक होने के कारण उन्हें हार्ट अटैक की दौरा नहीं के बराबर पड़ती है |
                                                           दुनिया के फरेब से परे एक सच्ची दुनिया अबुझमाड़ के लोग प्रकृति प्रेमी है |उनका पशु पक्षियों से भी गहरा रिश्ता है |माड. के अधिकांश घरो में मयूर पालन की जाती है हर आँगन में मोर के लिए एक अलग से कमरा बनाया जाता है |कुत्ता ,बकरी,गाय ,भैस ,बन्दर,बटेर ,बतख ,कबूतर आदि भी घरो में स्वतंत्र ही पाले जाते है ,बिना एक दुसरे को नुकसान पहुचाये |मेटानार ,ब्रेहबेड़ा ,दोदेरबेडा ,कदेर ,दह्काड़ोर ,ढ़ोदेबेदा ,तुडको ,इरेपानार ,समेत अन्य गावो में यह नजारा देखा जा सकता है |
                                                                 ये नहीं हो सकता अबुझमाड़ के अबूझ कहे जाने वाले माडिया आदिवासी रामजी राम धुव ,गुड्डू नुरेटी और प्रताप मंडावी को जब जुलाई के दुसरे पखवाड़े में नई दिल्ली में भूख से तीन बच्चियों की मौत की बात बताई गई तो उनके आशचर्य का ठिकाना न था कि दिल्ली में भी ऐसा हो सकता है वे मानने को तैयार ही न थे देश की राजधानी में भी ऐसा हो सकता है | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हमें आप यहाँ अपनी सुझाव दें॥

READ YOUR LANGUAGE